1857 का विद्रोह ( Revolt of 1857 )







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18 57 की क्रांति का विद्रोह की शुरुआत हिंदुस्तान के पश्चिम बंगाल के बैरकपर जिले की बैरकपुर छावनी से हुई थी जिसका नेतृत्व मंगल पांडे कर रहे थे । इस क्रांति की शुरुआत बैरकपुर छावनी से मानी जाती है तथा मंगल पांडे जी 18 सो 57 की क्रांति पहली गोली मंगल पांडे के द्वारा ही चलाई गई मंगल पांडे ने इस क्रांति की शुरुआत की और यह क्रांति आगे बढ़कर मेरठ पहुंच गए और मेरठ के सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया यह विद्रोह का मुख्य कारण सैनिकों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली नई एनफील्ड राइफल थी जिसमें गोली भरने से पहले उसे मुझसे छीन ना पढ़ता था और वह गोली पर गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था इससे हिंदू था मुसलमान दोनों का धर्म नष्ट होता है इसी कारण इस विद्रोह को और शक्ति मिली और यह विद्रोह और आगे बढ़ता चला गया ।



1857 की क्रांति जब और तेज हुई तो मेरठ के सैनिकों ने दिल्ली जाकर बहादुर शाह जफर द्वितीय को अपना बादशाहा नियुक्त कर दिया तथा संपूर्ण हिंदुस्तान का बादशाह बना दिया अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर द्वितीय को बंदी बनाकर रंगून म्यामार भेज दिया और वहीं पर बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो जाती है एकमात्र मुस्लिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय की मृत्यु भी देश में होती है और बहादुर शाह जफर की कब्र /मजार आ रहा वहीं पर बनी है उस पर 1 वाक्य लिखा है"-एक ऐसा बदनसीब शासक जिसको दफन मात्र के लिए अपने देश में 2 गज जमीन नसीब नहीं हुई ।


इसके उपरांत यह विद्रोह और बढ़ता गया और यह विद्रोह अवध पहुंच गया इस विद्रोह का नेतृत्व वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल कर रही थी बेगम हजरत महल में भी बड़े वीरता के साथ में अंग्रेजों का सामना किया और अंत में परास्त हो गई और नेपाल चली गई ।




वाजिद अली शाह से जुड़ी अनोखी बातें वाजिद अली शाह की नवाबी बहुत विख्यात है लखनऊ के नवाब अपनी नवाबी के लिए संपूर्ण विश्व में जाने जाते हैं उन्हीं में वाजिद अली शाह की नवाबी भी विख्यात है कहा जाता है कि वाजिद अली शाह ऐसी खीर खाया करते थे यदि किसी बूढ़े व्यक्ति को खवाद खिला दिया जाए तो वह जवान हो जाता था और किसी सूखे पेड़ पर डाल दिया जाए तो वह हरा भरा हो जाता था। जब अंग्रेजों ने उसके महल पर आक्रमण किया तो संपूर्ण सेना भाग गई और उसका एक दास उसे जूते पहना रहा था एक जूता उसके पैर में पहना दिया था दूसरा पहनाने ही वाला था कि अंग्रेजों ने अंदर आकर गोलियां बरसानी शुरू कर दी और वह दास भाग खड़ा हुआ लेकिन वाजिद अली शाह को अपनी नवाबी इतनी पसंद थी कि उसे अपनी जान भी प्रिय नहीं थी और वह वहां से नहीं भगा क्योंकि उसने एक पैर में जूता पहने था पर एक पैर में जूते नहीं पहने थे। वह चांदनी रात में भी छाता लगाकर निकला करते थे। इसी कारण आज भी लखनऊ की नवाबी विश्व विख्यात है।






यह विद्रोह आगे बढ़ा और कानपुर जा पहुंचा कानपुर में इसके नेतृत्व बाजीराव द्वितीय पेशवा के पुत्र नाना साहब कर रहे थे नाना साहब का संरक्षक तात्या टोपे थे। नाना साहब के बचपन का नाम धुंधुपंत था। तात्या टपे तथा नाना साहब ने डटकर अंग्रेजों का सामना किया और अंत में नाना साहब इन से प्राप्त हो गए और नाना साहब नेपाल चले गए इसके बाद मेंनाना साहब का कुछ पता नहीं चला। इसके बाद तात्या टोपे झांसी चले गए क्योंकि तात्या टोपे झांसी की महारानी लक्ष्मी बाई के गुरु भी थे ।


बुंदेलखंड की पावन पवित्र भूमि से 1857 की क्रांति का नेतृत्व वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई कर रही थी महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म बनारस में हुआ था इनके पिता नाना साहब के पिता पेशवा बाजीराव के कुल ब्राह्मण थे इसी कारण महारानी लक्ष्मीबाई का समस्त बचपन नाना साहब के साथ तथा तात्या टोपे के साथ कानपुर में ही बीता महारानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मनु था कई स्थानों पर इन्हें मणिकार्णिका भी कहा गया है कई बार इन्हें नाना साहब छबीली कहकर पुकारते थे। "बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।"


महारानी लक्ष्मी बाई के विवाह के 2 वर्ष उपरांत उनके पति गंगाधर राव का निधन हो गया उनका एक पुत्र भी हुआ जिसकी शिशु अवस्था में ही मृत्यु हो गई तथा इन्होंने एक पुत्र दामोदर को गोद लिया लेकिन डलहौजी की हड़प नीति के अनुसार यह गैरकानूनी था और इसे भी अंग्रेजों ने अपने अधिकार में लेने के लिए यहां पर भी आक्रमण कर दिया और अंग्रेजों मैं यहां का नेतृत्व जनरल हियुरोज कर रहे थे । महारानी लक्ष्मीबाई ने इनका डटकर सामना किया तथा इनके महल पर 7 गोले बरसाए गए लेकिन इनके महल को कुछ नहीं हुआ महारानी लक्ष्मी बाई अंत में अपने घोड़े पवन पर बैठकर अपने महल से छलांग लगा दी और ग्वालियर की तरफ भाग खड़ी हुई ग्वालियर के पेशवा ने इनको धोखा दे दिया और अंग्रेजों से जा मिले फिर भी यह बड़ी वीरता के साथ लड़की कहीं और कालपी में एक नाली से उछलते समय घोड़ा नाले पर अटक गया और अंग्रेजों ने इन्हें अपने हिरासत में ले लिया फिर भी महारानी बड़ी वीरता के साथ लड़ते हैं और वही वीरगति को प्राप्त हो गई उनकी समाधि वही कालपी पर बनाई गई।

जनरल हीरोज एक बात कहते हैं कि"-हिंदुस्तान के मर्दों में एकमात्र मर्द वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई थी।, 

वीरांगना महारानी लक्ष्मीबई से जुड़ी एक अनोखी जानकारी जिसके बारे में शायद ही किसी को मालूम हो बात यह है कि महारानी लक्ष्मी बाई को वास्तव में किसी ने नहीं देखा उनका 95% कार्य झलकारी बाई किया करती थी एकमात्र अंग्रेज प्रोफ़ेसर हॉफमैन ने नाना साहब से काफी अनुरोध किया कि हमें महारानी लक्ष्मीबई से मिला दीजिए ।काफी अनुरोध के बाद नाना साहब प्रोफ़ेसर हॉफमैन को वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई से मिलाया प्रोफ़ेसर हफमैन अपनी किताब पर लिखते हैं कि उनके चेहरे पर इतना तेज था कि उन्हें देखा नहीं जा सकता था वह अपनी किताब पर यह भी लिखते हैं कि मैं मानता हूं कि संपूर्ण हिंदुस्तान पर जितने भी अंग्रेज होंगे शायद किसी ने ही उनके वास्तव में दर्शन किए होंगे। प्रोफ़ेसर हॉफमैन उनकी एक इमेज भी लेत bypass

यह क्रांति आगे बढ़ी और जगदीशपुर जा पहुंचे जगदीशपुर में इसका नेतृत्व 80 साल का बुढ़ा कुंवर सिंह कर रहा था कुंवर सिंह अपने घोड़े पर सवार एक चमचमाती नंगी तलवार लिए हुए लड़ने के लिए तैयार खड़े हुए थे कुंवर सिंह भी बड़ी वीरता के साथ में अंग्रेजों का काफी समय तक सामना किया लेकिन अंत में अंग्रेजों की ताकत तब तक मजबूत हो चुकी थी और अंग्रेजों ने इसे बड़ी आसानी से दबा दिया।
1857 की क्रांति का नेतृत्व इलाहाबाद से लियाकत अली खान कर रहे थे ।



1857 की क्रांति उत्तर हिंदुस्तान तक ही सीमित रही यह संपूर्ण हिंदुस्तान तक नहीं पहुंच पाई जो कि इसकी असफलता का एक कारण बना इस क्रांति में संपूर्ण हिंदुस्तान भाग नहीं लिया। संपूर्ण भारत यदि एक होता शायद हमें 1857 में ही आजादी मिल गई होती।

"जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का कोई प्यार नहीं।।"

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