1857 की क्रान्ति तथा परिणाम।

 Ch 1 - क्रान्ति की शुरुआत



1857 की क्रान्ति को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। 


दोस्तों ! आज हम लोग 1857 की क्रांति के अमूल्य क्षणों को याद करेंगे जिनको आजकल की पीढ़ी भूलती जा रही है इस निबंध के जरिए आज हम आप लोगों तक उस 1857 की क्रांति के क्षणों को पहुंचाने का प्रयास करेंगे जो शायद आप तक नहीं पहुंच पाई या पहुंचने नहीं दिया गया क्योंकि 1857 की क्रांति में केवल व्यक्तियों ने ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान की वीरांगनाओं ने भी भाग लिया जिनमें महारानी लक्ष्मीबाई का स्थान अग्रणी है ।1857की क्रांति के असफल होने का मुख्य कारण यह भी रहा कि यह क्रांति संपूर्ण भारत में फैले नहीं सके तथा यह उत्तर भारत तक ही सीमित रही 1857 की क्रांति यदि संपूर्ण भारत तक पहुंच जाते तो शायद अपना देश अट्ठारह सौ सत्तावन को आजाद हो जाता और आज हम लोग कहां से कहां होते हैं तो 1857 की क्रांति का मुख्य उद्देश्य क्या था यह क्यों हुई कारण क्या रहे परिणाम क्या निकला किस तरह समाप्त हुई समाप्त होने का कारण उसके बाद भारत में किस प्रकार की रणनीति बनी अंग्रेजो के द्वारा भारत को किस प्रकार से हैंडल किया जाने लगा। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद समस्त ईस्ट इंडिया की कंपनी की शक्तियां भारत के गवर्नर के हाथ से छीन कर के इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के हाथ में चली गई अब ईस्ट इंडिया का पूरा कार्य महारानी विक्टोरिया के हाथों में चला गया। इस क्रांति में जिन जिन लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा आज हम लोग उन्हें अपने तहे दिल से याद करेंगे तथा उन्हें बारंबार नमन करेंगे ।  



18 सो 57 की क्रांति का प्रतीक चिन्ह कमल व रोटी/चपाती थी तथा हिंदुस्तान में आदिकाल से कमल को शांति का प्रतीक माना गया है और रोटी को अपने सुख व शांति के दिनों का प्रतीक माना गया है क्योंकि जिसको एक टुकड़ा रोटी भी नसीब होती है तो उसे सुखी माना गया है तथा इन प्रतीक चिन्ह को क्रांतिकारियों तक पहुंचाने में भी असुविधा नहीं होती थी और अंग्रेजों को पहचानने में भी असुविधा होती थी।





आजादी भले ही 1947 में मिली परंतु इसके लिए संघर्ष लगभग सौ वर्ष पूर्व ही आरंभ हो चुका था. वास्तव में इस 1857 की क्रान्ति का स्वर्णिम इतिहास ही कालान्तर में कई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणादायी बना. ये क्रान्ति तब हुई थी जब नेटवर्क की ज्यादा विकसित सुविधाए नहीं थीयह क्रान्ति असफल जरुर रही लेकिन इसने देश के लिए एक सुनहरे भविष्य की नीव रख दी थी।


1857 ई. की क्रांति के कारण 


सैन्य कारण (Military Cause)


1.भारतीय सैनिकों का वेतन 9 रूपये प्रति माह था ।


2. इस दौरान ही एनफील्ड राइफल भी आर्मी में लायी गई जो कि 1857 की क्रांति का सबसे बड़ा कारण बनी. इस राइफल की बुलेट पर ग्रीज का पेपर लगा होता था. सैनिक को अपने दांतों से इसे हटाना होता था,हिन्दू और मुस्लिम ने इसका विरोध किया,क्योंकि हिन्दुओं को लगता था कि इसमें गाय की चर्बी का इस्तेमाल हुआ हैं जबकि मुस्लिमों को लगा कि इसमें सूअर की चर्बी का उपयोग किया गया है. इससे दोनों पक्षों की धार्मिक भावनाए आहत हो गयी , मंगल पांडे के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह छेड दिया. ये विद्रोह सैनिकों ने किया था इसलिए इसे अंग्रेजों ने सैन्य विद्रोह की संज्ञा दी. जब ये विद्रोह दिल्ली पंहुचा तो क्रांतिकारियों ने बहादुर शाह जफ़र को इस क्रांति का लीडर घोषित कर दिया ।


राजनैतिक कारण (Political Cause)


1.लार्ड डलहौजी की नीतिया उन कारणों में से एक थी,जिससे ये क्रान्ति हुयी.


डलहौजी ने अवध, नागपुर, झाँसी, सतारा, नागपुर, सम्बलपुर, सूरत और ताजोर की आम जनता के साथ शासकों को भी नाराज किया था ।


 


 


 


मंगल पांडे

पहली बार इन्ही के नाम में ही शहीद लगाया गया।



ब्राह्मण मंगल पांडे बलिया के निवासी थे बाद में बैरकपुर पश्चिम बंगाल में अंग्रेज सैनिक बन गए थे लेकिन इन्हें अपना धर्म भी प्रिय था इन्होंने अपने धर्म को बचाने के लिए ही 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में आग में घी डालने का कार्य किया हिंदुस्तान में हिंदू गाय की पूजा करते हैं तथा मुसलमान सोमवार को अपना देव तुल्य मानते हैं इस प्रकार हिंदुस्तान के हिंदू तथा मुसलमान दोनों का ही धर्म भ्रष्ट हो रहा था क्योंकि इन्होंने अपनी पुरानी राइफल को छोड़कर नई एनफील्ड राइफल का प्रयोग किया जिसकी गोली को बंदूक में भरने से पहले मुख से काटना पड़ता था जिससे दोनों का धर्म भ्रष्ट होता था इस घटना को मंगल पांडे ने पहले अपनी आंखों से देखा उसके बाद ही इस पर संगीन कदम उठाया।


 


29 मार्च, 1857 ई. को मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने 'बैरकपुर छावनी' में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने इस सैनिक विद्रोह को सरलता से नियंत्रित कर लिया और साथ ही उसकी बटालियन '34 एन.आई.' को भंग कर दिया। 24 अप्रैल को 3 एल.सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नए कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आज्ञा की अवहेलना के कारण इन 85 घुड़सवारों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया। 'खुला विद्रोह' 10 मई, दिन रविवार को सांयकाल 5 व 6 बजे के मध्य प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी '20 एन.आई.' में विद्रोह की शुरुआत हुई, उसके बाद '3 एल.सी.' में भी विद्रोह फैल गया। इन विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई। मंगल पांडे ने 'हियरसे' को गोली मारी थी, जबकि 'अफसर बाग' की हत्या कर दी गई थी। मंगल पांडे को 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई। 9 मई को मेरठ में 85 सैनिकों ने नई राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया जिनको नौ साल जेल की सजा सुनाई गई ।


इस क्रांति का अंत यही नहीं होता है बल्कि इससे हम आगे इसी तरीके जारी रखते हुए हम अगले निबंध के पृष्ठ में इसी के साथ क्रमशः बढ़ती जा रही है और संपूर्ण भारत में एक क्रांति की ज्वाला का कार्य करती हैं तथा इसमें कितने लोगों ने हिंदुस्तान की कितने स्थानों से अपना नाम इस क्रांति में दर्ज कराते हैं। उनके बारे में हम बातें करेंगे तो आज के इस कहानी से आप लोगों को क्या सीख मिलती है हमें कमेंट में जरूर बताएं तथा अपनी भावनाओं को व्यक्त करें।


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